मेहमान सभी है
( तर्ज : एहसान तेरा होगा मुझपर ... )
मेहमान सभी हैं इस जगमें ,
एक दीन यहाँसे जाना है ।
यह सबको पता लगता है
मगर ,
क्योंभुलके होता
बहाना है ||टेक||
किसिने न देखी रतियाँकिसीकी ,
शादीहितो दिखजाती किसिकी
आज यहाँ कोई बनके चले पर ,
कलही न उसका ठिकाना है ।
यह सबको पता लगता है ,
मगर .. ॥१ . ॥
खेलत बालक युवक बना अब ,
बूढा यहि बन जाता है कब ।
ये कौन गिने इसकी घडियाँ ,
बस यांहि चला ये जमाना है ।
यह सबको पता लगता है ,
मगर ॥२ ॥
अचरज है ऐसा जो कहता ,
समझाता वहि गोता खाता ।
कहता तुकड्या , वारे प्रभु !
तेरा खूब बना रंग रैना है ॥
यह सब को पता लगता है ,
मगर ... ॥३ ॥
अयोध्या ; दि . ९ - ८-२ -३७
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